भगवान के अवतार का विधान और श्री कल्कि भक्ति | ||
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इस सृष्टि की रचना के साथ ही ईश्वर अपने पालनकर्ता के रूप की भूमिका को निभाता चला आ रहा है। भगवान श्री विष्णु के 24 अवतारों की कथा इसका प्रमाण है। भगवान अपने अवतार के द्वारा सृष्टि की रक्षा, धर्म की संस्थापना, सत्य की प्रतिष्ठा, न्याय का अनुपालन एवम् साधूजनों को बल प्रदान करते हैं। अवतार लेने का एक प्रमुख कारण अपने भक्तजनों को अपने संग का सुख प्रदान करना भी है।
भगवान के अवतारों में गुणात्मक भेद भी है। भगवान कभी अंशावतार के रूप में तो कभी आवेशावतार के रूप में भी आते हैं। इसी प्रकार कभी युगावतार क रूप में, तो कभी पूर्णांवतार के रूप में प्रकट होते हैं। भगवान श्री कल्कि भगवान महा विष्णु का पूर्ण अवतार हैं और युगावतार भी हैं। ऐसा माना जाता है कि भगवान राम 12 कलाओं के और भगवान कृष्ण 16 कलाओं के अवतार थे, लेकिन भगवान श्री कल्कि 64 कलाओं के पूर्ण निष्कलंक अवतार हैं।
भगवान कब अवतार लेते हैं ? बहुत से लोग कहते हैं कि अभी तो कलियुग का प्रथम चरण चल रहा है, अतः अभी श्री कल्कि अवतार कहाँ ? लेकिन यह तर्क बहुत कमजोर है। सभी को ज्ञात होना चाहिए कि कलियुग में मनुष्य की आयु 100 वर्ष निर्धारित है, फिर भी अधिकाशतः मनुष्य इस आयु को नहीं छू पाते। कोई 80 तो कोई 70 या फिर 60 वर्ष में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। कोई - कोई बच्चा तो बहुत कम आयु में अथवा जन्म लेते ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। कारण वह अपने जन्म के साथ ही अनेक बीमारियों का शिकार होता है। इसी प्रकार वर्तमान कलियुग भी अपने प्रथम चरण में ही अन्तिम चरण के लक्षणों से ग्रसित हो गया है। अतः भगवान का श्री कल्कि अवतार शीघ्र सम्भावित है। भगवान को कब आना है, यह भगवान ही निर्धारित कर सकते हैं। हम उनको किसी समय सीमा में नहीं बंाध सकते और भगवान श्री कल्कि तो महाकाल हैं, उन्हें काल की गणना से कौन बांध सकता है। भगवान के प्राकट्य में भक्तों की भूमिका भी बहुत अहम है। भक्त अपनी पुकार और प्रार्थना से भगवान को शीघ्र ही अवतार के लिए विवश कर सकता है। कभी-कभी तो एक भक्त की ही रक्षा के लिए भगवान प्रकट हुए हैं।
भगवान श्री कल्कि की भक्ति इस समय एक ऐसे कवच के समान है जो हमारी हर प्रकार से रक्षा कर सकती है। भगवान श्री कल्कि की भक्ति व्यक्तिगत न होकर समष्टिगत है। जो भी व्यक्ति भगवान श्री कल्कि की भक्ति करता है, वह चाहता है कि भगवान शीघ्र अवतार धारण कर भूमि का भार हटायें, दुष्टों का संहार करें। गौ-ब्राह्मणों की रक्षा करें, सुर-सन्तों की रक्षा करें, दीन-दुखियों के सहारे बनें, सनातन धर्म की रक्षा करें, भारत देश की रक्षा करें और फिर उनकी लाज रखें। कलि के प्रभाव से हमारे मन मस्तिष्क पर भौतिकता की और काम, क्रोध, मद, लोभ और मोह की कालिमा छा गई है। इस कालिमा को कल्कि जी की भक्ति ही साफ कर सकती है। कल्कि नाम की दुधारी तलवार से कलि की आयु क्षीण होती है और भक्ति और ज्ञान के साथ ही शक्ति का संचार भी होता है। भगवान श्री कल्कि का जो भी भक्त काम करता है, भगवान उसकी व्यक्तिगत मनोकामनाओं को भी पूर्ण करते हैं।
‘‘जो नमन करे प्रत्येक याम, यश कीर्ति बढ़े हों पूर्ण काम।’’
आठों याम की नमस्कार करने मात्र से यश, कीर्ति बढ़ती है और सारे काम पूर्ण होते हैं। भक्ति के अनेक रूप हैं। कोई भगवान को अपना माता-पिता मानता है, कोई उनको अपना स्वामी मानता है।
लेकिन भगवान श्री कल्कि की भक्ति करने का जो मार्ग कुलदीप कुमार गुप्ता ने श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के सदस्यों को दिखाया वह बिल्कुल अनोखा है। इस मार्ग में हम अपने आपको भगवान श्री कल्कि का एक सैनिक मानते हैं और भगवान श्री कल्कि हमारे सुप्रीम कमाण्डर के रूप में रहते हैं। इस भक्ति में सखा भाव भी समाया है। एक आम भक्त भगवान के दर्शन, अपनी मनोकामनाएं, उनके संग का सुख तथा मोक्ष की प्राप्ति आदि धारणायें रखता है और वह भगवान की कमजोरी भी बन सकता है। लेकिन जब हम अपने आप को भगवान श्री कल्कि का एक सैनिक मानते हैं, तो हम कहते हैं कि भगवान हमने कलि के विरूद्ध युद्ध आरम्भ कर दिया है, आप अपने अवतार और प्राकट्य के द्वारा हमारा नेतृत्व कीजिए और धर्म की रक्षा कीजिए, हम कलि के विरूद्ध लड़ाई में श्री कल्कि भगवान के साथ खड़े रहेंगे। हमें सारी दुनिया में कल्कि जी के आने की धूम मचानी है।
इस प्रकार सैनिक रूप में जो भक्ति भगवान श्री कल्कि की जा रही है, वह भगवान की कमजोरी नहीं अपितु भगवान की मजबूती बनती है।