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  युगावतार भगवान श्री कल्कि  
  सम्भल: भगवान के निष्कलंक अवतार की जन्म भूमि  
  भगवान के अवतार का विधान और श्री कल्कि भक्ति  
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  कुलदीप कुमार गुप्ता राद्गटृीय अध्यक्ष श्री कल्कि सेना ; निद्गकलंक दल  
 
सम्भल: भगवान के निष्कलंक अवतार की जन्म भूमि 
     
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           कल्कि अवतार का वर्णन श्री मद्भागवत पुराण, विष्णु पुराण, स्कन्ध पुराण, भविष्य पुराण आदि कई पुराणों में आता है। भगवान के प्रमुख दस अवतारों में कलियुग में होने वाला यह अन्तिम अवतार है। भगवान कल्कि कलियुग को मिटाकर सतयुग की स्थापना करेंगे। अतः कलि का नाश करने के कारण इनका प्रसिद्ध नाम कल्कि है।

          पुराणों द्वारा स्पष्ट है कि श्री कल्कि भगवान की जन्म भूमि सम्भल ग्राम है। श्रीमद् भागवत एवं श्री कल्कि पुराण में सम्भल ग्राम शब्द आता है।


‘‘ सम्भल ग्राम, मुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः
 भवने विष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति।।


          उन दिनों सम्भल ग्राम में विष्णुयश नाम के एक श्रेष्ठ ब्राह्मण होंगे उनका हृदय बहुत उदार एवं भगवत भक्ति से पूर्ण होगा, उन्हीं के घर भगवान कल्कि अवतार ग्रहण करेंगे।


          महिमार स्वस्य भगवान् निज जन्म कृतोधमः।
        विप्रर्षे सम्भल ग्राम मा विवेशपरात्मकः।।


         हे ऋषिगण! अपनी महिमा के बल पर परमात्मा भगवान श्री विष्णु जी ने स्वतः जन्म लेने को उद्यत हो सम्भल ग्राम में प्रवेश किया।


          किन्तु सम्भल कौन सा, कहाँ पर है ? इस विषय को स्पष्ट करना आवश्यक है। श्री कल्कि पुराण में लिखा है कि -


          यत्राष्टषष्ठि तीर्थांनां सम्भवः शम्भले भवत।
       मृत्योमोक्षः क्षितौ. कल्केरकल्कस्य पक्षश्रयात्।।


          इस सम्भल में अड़सत तीर्थों का नाम निवास हुआ। अकलंक जी के प्रभाव से सम्भल नगर में मृत्यु होने पर मोक्ष की प्राप्ति होने लगी।


          स्कन्ध पुराण (2.4) के अन्तर्गत सम्भल महात्मय में स्कन्द जी ने अगस्त्य जी से कहा है-


          आकर्णय महाभाग पुरवै शाम्भलेश्वरं।
        गंगारथ प्रामध्यसथं क्षेत्रं वै योजन त्रयं।।


          हे महाभाग अगस्त्य ! सम्भल नगर जो भागीरथी गंगा और राम गंगा के मध्य में है और तीन योजन (12 कोस) इसका प्रमाण (क्षेत्रफल) स्थित है।


          उपरोक्त दोनेां श्लोकों से निर्विवाद है कि उस सम्भल में 68 तीर्थ होंगे और गंगा और रामगंगा के मध्य होगा। अतः उ0प्र0 के जिला मुरादाबाद से 36 किमी0 पश्चिम में सम्भल हातिम सराय नाम के रेलवे स्टेशन से प्रसिद्ध सम्भल ही वह स्थान है इसमें 68 तीर्थ भी हैं और गंगा व रामगंगा के मध्य भी है। एक पुराणन्तर्गत सम्भल महात्म्य में निम्न श्लोको में हरि मन्दिर का वर्णन भी महत्वपूर्ण है -


‘‘वृद्ध ब्राह्मण वेषेण, सदा त्रिष्ठति मंदिरे।
 ताव देव स्थितस्य या वद् हरि समागमः।।


          वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके ब्रह्मा जी सदा हरि मन्दिर की गुफा के अन्दर वास करते हैं। जब तक कल्कि नारायण से उनका समागम नहीं होगा, तब तक ब्रह्मा जी वहाँ वास करेंगे।


 दिनानि सप्तदा स्थित्वा, कल्किः हरि मंदिरे।
कलाप ब्राम सच्छन्नौ, क्षत्रियौ सोम सूर्ययो।।


          हरि मंदिर में 17 दिन निवास कर कल्कि नारायण फिर वहाँ से जाकर कलाप ग्राम में चन्द्र और सूर्य वंश के गुप्त राजाओं को देखेंगे। यह हरि मन्दिर भी सम्भल में स्थित है। यह पुराणोक्त स्थान है। सम्भल महात्म्य में इसका वर्णन विस्तारपूर्वक दिया गया है। सम्भल का इतिहास बहुत प्राचीन है।


सत्येसत्यवृतो नाम, त्रेतायां च महद्गिरिः।
द्वापरेपिंगलो नाम, कलौ सम्भल उच्यते।।


          सतयुग में इसका नाम सत्यव्रत, त्रेता में महद्गिरी, द्वापर में पिंगल और कलियुग में सम्भल होगा। यह भारत के प्राचीन तीन ग्राम नन्दी ग्राम, कलाप ग्राम, सम्भल ग्राम में से एक है। यहाँ राजा ययाति ने तपस्या कर देवताओं द्वारा 68 तीर्थों का निर्माण कराया। कार्तिक में दीपावली के बाद चैथ, पंचमी तिथियों को यहाँ की परिक्रमा होती है, मेला लगता है।


          यह भगवान कल्कि की जन्म भूमि है, क्योंकि युग युगो से पुण्यभूमि भाग के उत्तराखण्ड, गंगा-यमुना का क्षेत्र, तपोभूमि, अवतारों की जन्म स्थली रही है।


          कई सौ वर्षों का प्राचीन, होल्कर वंश की कृष्णा माँ साहेब द्वारा निर्मित श्री कल्कि विष्णु के नाम से प्रख्यात विशाल मन्दिर भी यहाँ है, जिसमें भगवान कल्कि विष्णु की पद्मा जी सहित चतुर्भुज मूर्ति भव्य एवं दर्शनीय विराजमान है।


         इसका महात्म्य काशी से सोलह गुणा अधिक शास्त्रों में वर्णित है।


‘पुनंति सर्वतीर्थानि, स्नानदानै ना संशयः।
शभला लोकनादेव, सर्वपापः पमुच्यते।।


         सम्पूर्ण तीर्थस्नान अथवा दान से पवित्र करते हैं। सम्भल के दर्शन मात्र से ही सम्पूर्ण पापों से मनुष्य छूट जाता है।

 "बड़े भाग भयै वा सम्भल के ,
हरि जू हरि मंदिर आवैंगे ।
                                                                  (दशम्‌ ग्रन्थ गुरू ग्रन्थ साहिब में वर्णित)

"कल्कि नाम कलि काल में
सबते श्रेष्ठ कहाय ,
कल्कि धाम दर्शन करे
सम्भल थल में जाये "

                                                                (पू० प्रभुदत्त ब्रचारी जी महाराज के मुख से )

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