कुलदीप कुमार गुप्ता | ||
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कुलदीप कुमार गुप्ता संस्थापक, संयोजक एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) : |
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श्री काल्कि सेना (निच्च्कलंक दल) के संस्थापक, संयोजक एवं राच्च्ट्रीय अध्यक्ष का परिचय प्राचीन श्री कल्कि विच्च्णु मन्दिर के पूर्व व्यवस्थापक, एवं पुजारी स्व० श्री महेद्गा प्रसाद द्यार्मा ने कल्कि मंडल के विष्णु और सर्वसम्मानित सदस्य श्री रामस्वरूप द्यार्मा जी (दिल्ली निवासी) से सर्वप्रथम यह कहकर कराया कि ये हैं कल्कि सेना के नायक। १९९३ से आज तक भगवान श्री काल्कि ने अनको वह बल, बुद्घि और सामर्थ प्रदान की है की श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल ) उनके साधारण कर्मशील व्यक्तित्व में समर्पित नायक को ही देखती है। कुलदीप कुमार गुप्ता अपने पूज्य पिता स्व० श्री गोपानाथ गुप्ता एवं श्रद्घेय माता स्व० श्रीमती जयरानी देवी की आठवीं एवं सबसे छोटी संन्तान है। अपने पिता के रूप में एक ईमानदार, मेहनती, सादगीपूर्ण और कर्मद्गाील व्यक्तित्व को नित देखने वाला यह बालक अपने पिता की प्रद्गांसा जब औरों के मुख से सुनता था तो उसे आद्गचार्य हाता था की उसके पिता एक छाटी सी मिच्च्ठान की दुकान करने वाले जिन्होने कभी कोई सामाजिक या धार्मिक गतिविधि में हिस्सा नहीं लिया, कैसे सम्भल नगर में प्रसिद्घ है। एक बार कुलदीप जी के पिताजी के हमउम्र एक बुजुर्ग ने कुलदीप जी से कहा कि बेटा, तुम्हारे पिताजी में कोई दोष या ऐब नहीं है, हम उन्हें नजदीकी से देखा है, हम कोई दोच्च उनमें नहीं ;ढूंढ पाये। कुलदीप जी के पिताजी के बारे में उक्सर लोग कहते थे कि अरे! गोपीनाथ तो बहुत सीधे और गऊ है। पिता को बचपन से ही धार्मिक कर्मकाण्ड के नाम पर केवल गायत्र्ी मंत्र् का जाप ही करते पाया। लेकिन त्यौहारों के अवसर पर माता जी के आग्रह पर वह पूजा में सम्मिलित होते थे। कुलदीप जी ने अपनी माता के रूप में एक घरेलू गृहणी, मेहनती महिला, सवाभिमानी औरत और भावुक भक्त को देखा। |
. अद्गिाक्षित होते हुए भी अपने बच्चों की पढ़ाई की खातिर उन्होंने अपने पति का साथ देते हुए जो मेहनत की, वह आज की समय में अकल्पनीय है। बड़ी गृहस्थी और सीमित आमदनी के होते हुए भी अपनी पूजा और भक्ति के लिए वह समय और साधन निकाल लेती थी। उनके जीवन में भी सादगी, संतोच्च, मेहनत, स्वाभिमान, भक्ति, समर्पण और जिहवा पर हमेशा स्पष्टवादिता रहती थी। कुलदीप कुमार गुप्ता ने अपने बचपन में कभी तंगी या गरीबी का समय नहीं देखा, किन्तु उनके बड़े भाई बहनों ने वह संघर्ष के दिन देखे थे। अपनी माता-पिता को जीवन के अन्तिम चरण में भी कर्मशील ही पाया। माता-पिता और बड़ी बहनो-भाईयों व भाभियों के पूरे परिवार में कोई सम्बन्ध द्योच्च न था जिसका कोमल, प्रेरणादायी प्यार से भरा-पूरा और स्मृति में बना रहने वाला स्पर्द्गा कुलदीप जी ने अनुभव न किया हो। इस परिवार की विद्गोच्चता अगर तीन द्याब्दों में कहनी हो तो हम कहेंगे - प्यार, विद्गवास और ईमानदारी। |
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यह संदर्भ जो ऊपर दिया गया है, वह बहुत जरूरी है क्योंकि कोई भी व्यकितत्व अपने माता-पिता और परिवार के बिना बन ही नहीं सकता। परिवार के सबसे छोटे सदस्य होने के कारण कुलदीप जी को लाड़-प्यार भी ज्यादा मिला, जिसने उन्हें जिददी भी बना दिया। पढ़ाई को लेकर उनका मन अनमना रहता और रूचि नहीं लेता, लेकिन बडे भाईयों ने यह ठान लिया था कि उन्हें पढ़ना ही पढ ेगा और कक्षा ६ से उनका रूझान व रूचि पढ़ने में लगी तब उन्हेंने पीछे मुडकर नहीं देखा। लेकिन पढ़ने के साथ पिताजी और भाईयों का दुकान में हाथ भी बटाना होता था और एक समय एसा आया कि दुकानदारी की पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गयी, जिससे उनकी पढ़ाई बी० ए० पास करके ही रूक गई। कक्षा ७ में पढ़ने के दौरान कुलदीप जी ने स्वदेशी की भावना से प्रेरित होकर र्आजाद हिन्द सदर्न की स्थापना की। उसके बाद बी० ए० पूरी.करने के बाद १९९३ में उन्होंने स्थापना की र्श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) की। किन्तु इसकी स्थपना विल्कुल अलग और विद्गिाच्च्ट थी, क्योकि इसमें दैवीय द्याक्ति का हाथ और योगदान दोनों ही था। श्री कल्कि सेना(निष्कलंक दल) की स्थापना के काफी समय बाद उन्होंने एक और संगठन की स्थापना की और वह था राष्ट्रीय जनहित मंच। लेकिन जो समर्पण, जो लगाव, जो मेहनत और जो दीवानापन श्री काल्कि सेना (निष्कलंक दल) को लेकर श्री कुलदीप जी में था और है, वह किसी अन्य के प्रति नहीं रहा । श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) का सम्पूर्ण गठन उनका वह सपना है, जो उनका मिद्गान बन चुका है। कुलदीप जी के भीतर एक भावुक कवि भी निवास करता है, जो उनकी अभिव्यक्ति और स्वरों में ।लका है। अपने जातिगत कर्म को करते हुए, अपने गृहस्थ जीवन को जीते हुऐ उन्होंने यह प्रण लिया है कि बड़ी सोच और बडे सपनों को उन्हें पूरा करना है। आज श्री काल्कि सेना (निष्कलंक दल) की यात्र में और उनके सपनों और सोच में जो सबसे प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से उनका सहायक रहा है तो वह है कुलदीप जी की धर्मपत्नी श्रीमती निरूपमा गोयल। १९९३ में श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल ) बनी और १९९४ में उनका विवाह हो गया। प्रारम्भ में उनकी पत्नी को कुछ हसहज लगा परन्तु बाद में वह भी कल्कि भक्ति में सराबोर हो गयाीं। |
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संक्षेप में कुलदीप कुमार गुप्ता के व्यक्तित्व में निम्न तत्वों का सम्मिश्रण मिलता है- | |||||||||||||||||||||||
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१०- एक छात्र् के रूप में, एक व्यापारी के रूप में, एक कवि के रूप में, एक गायक के रूप में, एक नृत्य पारंगत के रूप में, एक संगठनकर्ता के रूप में, एक नेता के रूप में, एक गृहस्थ के रूप में, एक अभिनेता के रूप में, एक वक्ता के रूप में, एक खिलाडी के रूप में, एक सिद्घान्तकार के रूप में, एक संम्बन्ध निभाने के रूप में, एक प्रेरक के रूप में, एक अनुप्रेरित के रूप में, एक दृढ़ प्रति और लगनशील व्यक्ति के रूप में, प्रेम की अनन्त गहराईयों से अभिभूत पागल प्रेमी के रूप में, समाज की मर्यादा को निभाने वाले के रूप में, प्रेम की प्रतिा को निभाने वाले भक्त के रूप में, एक द्गिाच्च्य के रूप में, एक मित्र् के रूप में, एक सैनिक के रूप में, एक सेनापति के रूप में और संतुलित व नियंत्र्ित मन के राजा के रूप में कुलदीप कुमार गुप्ता एक ऐसा व्यक्तित्व हैं जिसको सम।ने के लिऐ बस एक ही तरीका है इच्छित व्यक्ति श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल ) का सदस्य बने. क्याकि कुलदीप कुमार गुप्ता का कहना है कि मैंने भगवान श्री कल्कि की भक्ति सखा भाव से की है, अतः जब भी भगवान कल्कि मिलें तो एक मित्र् के रूप में और वह इसीलिए सभी कल्कि सैनिको को सखा भाव से ही देखते है। पता नही कब भगवान श्री कल्कि एक सैनिक बनकर इस सखा मण्डल में शामिल हो जायें। |
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