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  युगावतार भगवान श्री कल्कि  
  सम्भल: भगवान के निष्कलंक अवतार की जन्म भूमि  
  भगवान के अवतार का विधान और श्री कल्कि भक्ति  
  श्री कल्कि वाणी  
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  प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर - सम्भल  
  श्री कल्कि जयन्ती महोत्सव - सम्भल  
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  कुलदीप कुमार गुप्ता राद्गटृीय अध्यक्ष श्री कल्कि सेना ; निद्गकलंक दल  
 
श्री कल्कि जयन्ती महोत्सव - सम्भल 
     
     

 

           भगवान श्री कल्कि की नगरी सम्भल में लगभग सन् 1960 से श्री कल्कि जयन्ती महोत्सव मनाया जा रहा है। यह महोत्सव भगवान श्री कल्कि की प्रस्तावित अवतार तिथि को मनाया जाता है। प्रतिवर्ष श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी और छठ को यह उत्सव सम्भल के प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर में मनाया जाता है। प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर से शुरू हुआ यह उत्सव सारे नगर और सभी कल्कि भक्तों का उत्सव बन चुका है। इस उत्सव में पंचमी के दिन (नाग पंचमी) भगवान श्री कल्कि की विशाल शोभा यात्रा और भव्य रथ यात्रा साथ-साथ निकलती है। भगवान की शोभा यात्रा और रथ यात्रा में सभी कल्कि भक्त पूरे उत्साह व भक्ति भाव से सम्मिलित होते हैं। भगवान श्री कल्कि के रथ को कल्कि भक्त और कल्कि सैनिक नंगे पैर अपने हाथों से खींचते हैं और जब रथ के आगे - आगे सभी कल्कि सैनिक और कल्कि भक्त ‘कल्कि जी की सेना चली’ भजन पर झूमते नाचते चलते हैं तो लगता है जैसे कल्पना के दृश्य साकार हो गये हैं। यह शोभा यात्रा और रथ यात्रा प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर से प्रारम्भ होकर नगर का भ्रमण कर प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर पर आकर ही सम्पन्न हो जाती है। रथ यात्रा का भव्य आकर्षण वर्ष 2005 से श्री कल्कि सेना (निष्कलंक दल) के प्रयासों से भगवान श्री कल्कि जी के बने दिव्य रथ के निर्माण द्वारा सम्भव हुआ है। यह रथ प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर की छोटी अनुकृति है। रथ यात्रा इस महोत्सव के पहले दिन का मुख्य आकर्षण रहता है।


          महोत्सव क दूसरे दिन भगवान श्री कल्कि का महायज्ञ होता है। महायज्ञ के पश्चात् विशाल भण्डारा होता है। इसके अतिरिक्त महोत्सव के दोनों दिन भगवान श्री कल्कि की पुकार, संकीर्तन एवं भजन संध्या चलती रहती है। भगवान श्री कल्कि के महोत्सव के दूसरे दिन मध्य रात्रि होते ही भगवान श्री कल्कि की महाआरती होती है और इसके साथ ही यह महोत्सव सम्पन्न हो जाता है। श्री कल्कि जयन्ती महोत्सव में भाग लेने के लिए देश के कोने-कोने से कल्कि भक्त सम्भल आते हैं। इन सभी भक्तों के संगम से भक्ति और समरसता की अनोखी सरिता बह निकलती है। भगवान श्री कल्कि का नाम इन्हें ऐसे जोड़ देता है कि वह एक ही परिवार के सदस्य लगते हैं और वह परिवार है - कल्कि परिवार।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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